



















विनय मेरे लंगोटिया दोस्तों में एक है. पत्थर के व्यवसाय में पैसा तो उसने कमाया, मगर घूमना ज्यादा हुआ नहीं था. एक बार भड़क गया- गाली निकालते हुए बोला- आग लगे इस पैसे में- अभी तक सा.. भागलपुर से आगे नहीं गये हैं!... और वह मेरे साथ चल पड़ा. मैं तब वायु सेना ग्वालियर में पोस्टेड था.
पहले हमदोनों दिल्ली घूमे, फिर आगरा घूमे और फिर ग्वालियर. बड़े अच्छे गुजरे वे कुछ दिन.
मैं तो दंग बाद में यह देखकर हुआ कि जितनी तस्वीरें उसने खींची, सारी लाजवाब थीं- जबकि उसे फोटोग्राफी करते हुए मैंने कभी देखा ही नहीं था.
खैर, एक सुबह मैं उसे ग्वालियर स्टेशन पर 'चम्बल एक्सप्रेस' में बैठा आया- वह सकुशल बर्द्धमान उतरकर वहाँ से बरहवा चला आया.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें